मराठा आरक्षण आंदोलन: मनोज जारांगे पाटिल के रुख में बदलाव से महाराष्ट्र की राजनीति गरमाई
जालना: मराठा आरक्षण आंदोलन के प्रमुख नेता मनोज जारांगे पाटिल का बदलता रुख महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा का विषय बन गया है। हाल ही में उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव न लड़वाने की घोषणा की, जिसके बाद उनके बयान और उनके रुख में बार-बार बदलाव की स्थिति नजर आई है। अब उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि महायुति (एनडीए) और महा विकास अघाड़ी (एमवीए), दोनों ही उनके लिए समान हैं।
जारांगे पाटिल का यह बयान तब आया जब उनसे पूछा गया कि क्या मराठा मुद्दे पर किसी विशेष गठबंधन का समर्थन किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “मैं न किसी का समर्थन कर रहा हूं और न किसी का विरोध। मेरा उद्देश्य सिर्फ मराठा आरक्षण आंदोलन है।”
मराठा समुदाय का प्रभाव और जारांगे का प्रभाव
जालना के अंतरावाली सराटी में मनोज जारांगे पाटिल का प्रभाव आज भी कायम है। वे अपनी बदलती रणनीतियों के बावजूद, समर्थकों के बीच एक प्रभावशाली नेता बने हुए हैं। जारांगे का दावा है कि मराठा समुदाय के “6 करोड़” लोग आरक्षण के लिए एकजुट हैं।
पाटिल ने कहा कि मराठा आरक्षण का मुद्दा अब राजनीतिक दलों के वादों और नाकामियों का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने आरोप लगाया कि सभी दल इस मुद्दे को हल करने में विफल रहे हैं।
एमवीए को झटका, महायुति को मौका?
जारांगे पाटिल का यह बयान विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के लिए बड़ा झटका हो सकता है। लोकसभा चुनावों में मराठा समुदाय का झुकाव एमवीए की तरफ देखा गया था। यदि विधानसभा चुनाव में जारांगे पाटिल का ताजा रुख मराठा वोट बैंक को विभाजित करता है, तो इसका सीधा फायदा सत्ताधारी महायुति गठबंधन (बीजेपी-शिवसेना-आरपीआई) को मिल सकता है।
मराठा वोट बैंक का महत्व
महाराष्ट्र में लगभग 28% मतदाता मराठा समुदाय से आते हैं। जारांगे पाटिल की भूमिका इन मतदाताओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण मानी जाती है। यदि मराठा वोट स्वतंत्र रूप से विभाजित हुआ, तो सत्ताधारी महायुति इसका फायदा उठा सकती है। वहीं, विपक्षी एमवीए के लिए यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बन सकती है।
बीजेपी की रणनीति
महायुति पहले से ही ओबीसी वोट बैंक को एकजुट करने के लिए सक्रिय है। मराठा आरक्षण पर जारांगे के रुख में बदलाव से बीजेपी को मराठा समुदाय के गुस्से को कम करने में मदद मिल सकती है।
निष्कर्ष
मनोज जारांगे पाटिल का बदला हुआ रुख महाराष्ट्र की राजनीतिक समीकरणों को नई दिशा दे सकता है। विधानसभा चुनावों में मराठा समुदाय का फैसला महाराष्ट्र की सत्ता के समीकरणों को तय करेगा। पाटिल का यह कहना कि “सभी राजनीतिक दल मराठा आरक्षण पर एक जैसे हैं,” राजनीतिक दलों को अपनी रणनीति पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर सकता है।