ज्ञानवापी से अजमेर तक: सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर पर्सनल लॉ बोर्ड और विपक्ष का विरोध
अजमेर शरीफ और अन्य धार्मिक स्थलों पर सर्वेक्षण को लेकर अदालतों के फैसलों ने नए विवादों को जन्म दिया है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पर सवाल उठाए हैं, जिनकी अध्यक्षता में 2023 में वाराणसी के ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण की अनुमति दी गई थी।
पर्सनल लॉ बोर्ड और विपक्ष का विरोध
AIMPLB ने इस फैसले को 1991 के “प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट” की भावना के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दे सकता है। बोर्ड का कहना है कि इस कानून के तहत पूजा स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 के अनुसार बदली नहीं जा सकती। समाजवादी पार्टी के सांसदों ने भी अदालत के फैसले को गलत ठहराया और कहा कि इससे अन्य मस्जिदों और धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण का रास्ता खुल गया है।
नए विवाद और याचिकाएं
ज्ञानवापी मामले के बाद, मथुरा की शाही ईदगाह, लखनऊ की टीले वाली मस्जिद, और अब अजमेर शरीफ के मंदिर होने के दावों पर याचिकाएं दाखिल हो रही हैं। इन याचिकाओं के चलते सांप्रदायिक माहौल और तनाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए सर्वेक्षणों पर रोक लगाने की मांग की है।
हिंदू पक्ष की दलील
हिंदू पक्ष का कहना है कि 1991 का कानून भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्थलों पर लागू नहीं होता। वकील विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि यदि कोई स्मारक धार्मिक स्थल है, तो ASI उसकी धार्मिक प्रकृति की जांच कर पूजा की अनुमति दे सकता है।
अदालत का रुख और भविष्य
सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में ज्ञानवापी मामले में ASI को वैज्ञानिक सर्वेक्षण की अनुमति देते हुए कहा था कि “1991 का कानून पूजा स्थल की धार्मिक प्रकृति की जांच से नहीं रोकता।” इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा के शाही ईदगाह में भी सर्वेक्षण की अनुमति दी।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
RSS प्रमुख मोहन भागवत के बयान का हवाला देते हुए विपक्ष ने हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की आवश्यकता पर सवाल उठाया। कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने कहा कि इन सर्वेक्षणों का उद्देश्य केवल सांप्रदायिक तनाव बढ़ाना है।
आगे की राह
देश की नजरें अब इन विवादित याचिकाओं और सर्वेक्षणों पर सुप्रीम कोर्ट के अगले फैसले पर टिकी हुई हैं। सवाल यह है कि क्या इन कदमों से सांप्रदायिक सौहार्द्र बना रहेगा या विभाजन की खाई और गहरी होगी।