संसद में पेश हुआ ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक, विपक्ष ने किया कड़ा विरोध
संसद में केंद्र सरकार द्वारा ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक पेश किए जाने के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने इस विधेयक को असंवैधानिक बताते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है।
कांग्रेस और विपक्ष का विरोध:
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह विधेयक देश की आत्मा पर चोट है। पार्टी का कहना है कि यह संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है। कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए कहा, “यह विधेयक अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है।”
हैदराबाद के सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक को “लोकतंत्र की राष्ट्रपति शैली को लागू करने की कोशिश” बताया। उन्होंने कहा कि यह कानून क्षेत्रीय दलों को खत्म करने के लिए लाया गया है और इसका मकसद केवल एक नेता के अहंकार को संतुष्ट करना है।
जेपीसी के पास भेजने का अनुरोध:
विधेयक के प्रस्तुत होने के बाद केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से इसे संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेजने का अनुरोध किया।
बीजेपी ने किया बचाव, कांग्रेस पर साधा निशाना:
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा ने विपक्ष के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस के कारण ही यह स्थिति पैदा हुई है। उन्होंने कहा, “1952 से 1967 तक देश में एक साथ चुनाव होते थे। लेकिन कांग्रेस ने अनुच्छेद-356 का दुरुपयोग कर राज्यों की सरकारों को गिराया, जिससे चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे।”
विपक्ष की एकजुटता:
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी) और समाजवादी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने इस विधेयक को अलोकतांत्रिक बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह विधेयक चुनाव आयोग को अवैध शक्तियां देता है और लोकतंत्र के संघीय ढांचे को कमजोर करता है।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक?
‘एक देश, एक चुनाव’ का उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। सरकार का दावा है कि इससे समय और धन की बचत होगी। हालांकि, विपक्ष का कहना है कि यह देश की बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था और संघीय ढांचे को कमजोर करेगा।
इस विधेयक के खिलाफ संसद और सड़कों पर विरोध जारी है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस पर विपक्ष की चिंताओं का समाधान कैसे करती है।