महाराष्ट्र में महायुति सरकार में दरार! फडणवीस ने शिंदे को किया बाहर, अंदरूनी खींचतान तेज

महाराष्ट्र की महायुति सरकार में सत्ता संतुलन को लेकर विवाद खुलकर सामने आने लगा है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के पुनर्गठन में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इस कदम ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और यह संकेत दिया है कि बीजेपी और शिंदे गुट के बीच रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं।
शिंदे की अनदेखी, अजित पवार को जगह
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में इस बार डिप्टी सीएम और एनसीपी नेता अजित पवार को शामिल किया गया, लेकिन शिंदे को बाहर रखा गया। जबकि शिंदे के पास शहरी विकास विभाग है, जो प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में अहम भूमिका निभाता है। यह फैसला शिंदे गुट के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
पीए और ओएसडी की नियुक्तियों में भी रोड़ा
शिंदे गुट के मंत्रियों की शिकायत है कि निजी सहायकों (पीए) और विशेष कार्य अधिकारियों (ओएसडी) की नियुक्तियों को सीएमओ (मुख्यमंत्री कार्यालय) द्वारा जानबूझकर रोका जा रहा है। इससे प्रशासनिक फैसले लेने में मंत्री असहाय महसूस कर रहे हैं।
बीजेपी के दबाव में शिवसेना?
सूत्रों के मुताबिक, 2014 से विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारियों की नियुक्तियां भी लटकी हुई हैं। ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी नेतृत्व इन नियुक्तियों पर पूरी तरह नियंत्रण रखना चाहता है, जिससे शिंदे गुट को यह संदेश मिले कि असली ताकत कहां है।
पहले भी हुआ था टकराव
यह पहली बार नहीं है जब महायुति सरकार में मतभेद उभरकर आए हैं। इससे पहले जिला संरक्षक मंत्रियों की सूची जारी करने के दौरान भी शिवसेना को किनारे किया गया था। रायगढ़ और नासिक जिलों की जिम्मेदारी बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी को दी गई, जिससे शिंदे गुट में नाराजगी बढ़ गई थी।
कैबिनेट बैठक में उठा सकते हैं मुद्दा
शिंदे गुट के मंत्री इस मामले को जल्द ही कैबिनेट बैठक में उठाने की योजना बना रहे हैं। उद्योग मंत्री उदय सामंत ने विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर यह निर्देश दिया है कि मंत्रियों को फैसलों की पूरी जानकारी दी जाए।
क्या महायुति में टूट की ओर बढ़ रही सरकार?
शिंदे खेमे में नाराजगी गहराती जा रही है, और सरकार के भीतर बढ़ती खींचतान महाराष्ट्र की राजनीति में नए सियासी मोड़ का संकेत दे रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि शिंदे गुट और बीजेपी के बीच यह टकराव कितना आगे बढ़ता है और क्या महाराष्ट्र में सत्ता संतुलन में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा?