दिल्ली दंगे 2020: कपिल मिश्रा के खिलाफ FIR की मांग पर पुलिस ने बताया ‘साजिश’, क्या अमित शाह के दबाव में मिश्रा को बचाया जा रहा है?

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी दंगों को लेकर भाजपा नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ FIR दर्ज करने की याचिका पर दिल्ली पुलिस ने सख्त रुख अपनाया है। गुरुवार को राउज एवेन्यू कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा कि मिश्रा को फंसाने की साजिश रची गई थी, जबकि याचिकाकर्ता मोहम्मद इलियास का दावा है कि उन्होंने खुद मिश्रा को हिंसा भड़काते हुए देखा था। अब 24 मार्च को अदालत इस मामले में अपना फैसला सुनाएगी।
क्या दिल्ली पुलिस अमित शाह के दबाव में?
इस पूरे मामले को लेकर दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। कई राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्षी दलों का आरोप है कि दिल्ली पुलिस भाजपा सरकार के दबाव में काम कर रही है और गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर कपिल मिश्रा को बचाने की कोशिश कर रही है। सवाल यह उठ रहा है कि जब कई गवाहों ने मिश्रा पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया है, तो पुलिस इतनी जल्दी उन्हें निर्दोष कैसे घोषित कर सकती है?
याचिकाकर्ता का दावा – मिश्रा ने भड़काई थी हिंसा
मोहम्मद इलियास ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि 23 फरवरी 2020 को उन्होंने मिश्रा और अन्य भाजपा नेताओं को कर्दमपुरी इलाके में प्रदर्शनकारियों को धमकाते, सड़क जाम करते और रेहड़ी-पटरी वालों की गाड़ियां तोड़ते हुए देखा। इलियास के मुताबिक, इस दौरान पुलिस भी मिश्रा के साथ मौजूद थी।
याचिका में मिश्रा के अलावा भाजपा सांसद सतपाल, मुस्तफाबाद के विधायक मोहन सिंह बिष्ट और पूर्व विधायक जगदीश प्रधान समेत पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है।
दिल्ली पुलिस का बचाव – मिश्रा निर्दोष?
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के विशेष सरकारी वकील अमित प्रसाद ने अदालत में कहा कि मिश्रा के खिलाफ हिंसा भड़काने के आरोप झूठे हैं। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली दंगों की साजिश पहले ही उजागर हो चुकी है, जिसमें जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद समेत अन्य कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया था।
पुलिस के अनुसार, दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप (DPSG) की चैट से साफ है कि 15-17 फरवरी के बीच चक्का जाम और विरोध-प्रदर्शन की योजना बनाई गई थी। पुलिस का कहना है कि मिश्रा को राजनीतिक रूप से फंसाने की कोशिश की जा रही है।
क्या भाजपा मिश्रा को बचा रही है?
इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। विपक्षी दलों का आरोप है कि पुलिस मिश्रा को बचाने के लिए गवाहों और सबूतों को नजरअंदाज कर रही है। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या यह सब गृहमंत्री अमित शाह के इशारे पर हो रहा है?
कोर्ट के फैसले पर टिकी नजरें
इस मामले में 24 मार्च को अदालत का फैसला आने वाला है, जिसका गहरा राजनीतिक असर हो सकता है। अगर अदालत मिश्रा के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश देती है, तो भाजपा के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, अगर मिश्रा को क्लीन चिट मिलती है, तो विपक्ष इसे जांच एजेंसियों की मिलीभगत बताएगा।
सोशल मीडिया पर बंटे लोग
यह मामला सोशल मीडिया पर भी चर्चा में है। कुछ लोग मिश्रा को निर्दोष बताते हुए इसे राजनीतिक साजिश करार दे रहे हैं, जबकि अन्य का कहना है कि दंगे भड़काने वालों को बचाया जा रहा है। अब सभी की निगाहें 24 मार्च पर टिकी हैं, जब अदालत इस पर अपना फैसला सुनाएगी।