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नागपुर हिंसा: क्या धर्म अब केवल राजनीति का हथियार बनकर रह गया है?

Writer – Feroz Aashiq

भारत अपनी विविधता और सांस्कृतिक सहिष्णुता के लिए जाना जाता है। यहां हर धर्म और संस्कृति को समान सम्मान प्राप्त है। लेकिन जब यही विविधता नफरत और विभाजन का कारण बनने लगती है, तो समाज में अशांति फैलती है। नागपुर में हाल ही में हुई हिंसा इस बात का प्रमाण है कि किस तरह असामाजिक तत्व समाज की शांति को भंग कर सकते हैं।

नागपुर: प्रेम और सद्भाव का शहर

महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर, जो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का गृहनगर भी है, हमेशा से शांतिप्रियता का प्रतीक रहा है। यह शहर गोंड शासक बख्त बुलंदशाह और भोंसले वंश की सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध है, जहां सभी समुदाय आपसी प्रेम और सद्भाव के साथ रहते आए हैं।

रामनवमी जुलूस के दौरान मुस्लिम और सिख समुदाय के लोग सेवा प्रदान करते हैं और शरबत बांटते हैं, वहीं रमजान और ईद के दौरान हिंदू भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। ताजुद्दीन बाबा और साईं बाबा जैसे संतों की शिक्षाओं का प्रभाव इस शहर पर गहरा है, जो प्रेम और एकता का संदेश देते हैं।

हिंसा क्यों भड़की?

नागपुर में हाल की हिंसा असामाजिक तत्वों द्वारा कुरआन की लिखी आयातों की चादर जलाने के बाद भड़की। यह घटना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली थी और इसके चलते स्थानीय लोगों में आक्रोश पनपा, जिससे माहौल बिगड़ गया।

इतिहास पर नजर डालें तो नागपुर में 1923, 1927 और 1991 में बड़े दंगे हुए थे। लेकिन पिछले कुछ दशकों से यह शहर शांति और सामंजस्य का केंद्र बना हुआ था। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर कौन लोग इस शांति को भंग करने की कोशिश कर रहे हैं?

क्या धर्म केवल नफरत फैलाने के लिए रह गया है?

धर्म का मूल उद्देश्य शांति, प्रेम और सहिष्णुता सिखाना है। दुनिया के हर धर्म में भाईचारे की सीख दी गई है, लेकिन कुछ असामाजिक तत्व इसे नफरत का औजार बना रहे हैं।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के ‘धर्म, संघर्ष और शांति’ पर हुए एक अध्ययन के अनुसार, धर्म व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन जब इसे राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तब यह समाज में हिंसा को जन्म देता है।

राजनीतिक और धार्मिक नेताओं की भूमिका

आज आवश्यकता इस बात की है कि राजनीतिक और धार्मिक नेता समाज को जोड़ने का कार्य करें, न कि तोड़ने का। दुर्भाग्यवश, वर्तमान समय में कुछ लोग धर्म को हथियार बनाकर अपना राजनीतिक स्वार्थ साध रहे हैं।

आज भी दंगे औरंगजेब के मकबरे के मुद्दे को लेकर हो रहे हैं।
क्या हम इतिहास की कट्टरता को दोहराना चाहते हैं?
क्या हम कब्रों और मंदिर-मस्जिद के नाम पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होना चाहते हैं?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर का यह कथन बहुत महत्वपूर्ण है – “मुगल बादशाह आज बिल्कुल भी प्रासंगिक नहीं हैं। हमें हर तरह की हिंसा से बचने का प्रयास करना चाहिए।”

आगे का रास्ता क्या हो?

अगर समाज में स्थायी शांति स्थापित करनी है तो निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना जरूरी है –

  1. असामाजिक तत्वों पर सख्त कार्रवाई – जो लोग धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर माहौल बिगाड़ते हैं, उनके खिलाफ निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, चाहे वे किसी भी समुदाय से हों।
  2. धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल रोका जाए – नेताओं और संगठनों को यह समझना होगा कि धार्मिक मुद्दों पर राजनीति करने से समाज का नुकसान होता है।
  3. सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा – हर समुदाय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे किसी भी उकसावे में न आएं और अफवाहों से बचें।
  4. न्यायपालिका और प्रशासन की भूमिका – न्याय और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन को सक्रिय रहना होगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

समाप्ति: धर्म प्रेम का संदेश देता है, नफरत का नहीं

धर्म इंसान को जोड़ने का कार्य करता है, तोड़ने का नहीं। यह हर व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह धर्म के माध्यम से प्रेम फैलाए या घृणा। दंगे किसी समस्या का समाधान नहीं हैं, बल्कि वे समाज के भविष्य को नष्ट कर देते हैं। अब समय आ गया है कि हम इस कट्टरता को समाप्त करें और प्रेम और भाईचारे की संस्कृति को मजबूत करें। तभी हमारा समाज और देश सच्चे अर्थों में विकास की ओर बढ़ सकेगा।

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