औरंगजेब की कब्र विवाद फिलहाल शांत, आरएसएस और बीजेपी ने लिया यू-टर्न

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग को लेकर उठे विवाद को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। बीजेपी और आरएसएस समेत दक्षिणपंथी संगठनों ने अब इस मुद्दे को शांत कर दिया है। हाल ही में जब विभिन्न शहरों में बीजेपी और संघ के नेताओं से इस बारे में सवाल किए गए तो उन्होंने साफ कहा कि वे कब्र को हटाने की मांग नहीं कर रहे हैं।
एनडीए सहयोगी दलों का दबाव?
एनडीए के सहयोगी और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने इस विवाद को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि देश में इससे भी बड़े और अहम मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी साफ कर दिया कि औरंगजेब का मकबरा संरक्षित स्मारक है और इसे हटाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालांकि, उन्होंने कहा कि इसका महिमामंडन भी नहीं होने दिया जाएगा।
कैसे भड़का विवाद?
मामला तब गरमाया जब बॉलीवुड फिल्म “छावा” रिलीज हुई, जो छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है। इस फिल्म के बाद औरंगजेब को लेकर नाराजगी बढ़ी और विश्व हिंदू परिषद (VHP) व बजरंग दल जैसे संगठनों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग तेज कर दी। उन्होंने धमकी दी कि अगर सरकार इसे नहीं हटाएगी, तो वे अयोध्या जैसा आंदोलन करेंगे।
हिंसा और प्रशासन की सख्ती
इस मांग के बाद नागपुर में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसके बाद पुलिस को कड़ी कार्रवाई करनी पड़ी। 8 दक्षिणपंथी नेताओं पर मामला दर्ज हुआ, लेकिन उन्हें तुरंत जमानत मिल गई। इसके बाद एएसआई ने औरंगजेब की कब्र को टिन की चादरों से ढक दिया ताकि स्थिति शांत की जा सके।
आरएसएस का बदला रुख
हालात बिगड़ते देख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने खुद इस विवाद से दूरी बना ली। आरएसएस के वरिष्ठ नेता सुरेश ‘भैय्याजी’ जोशी ने इसे “अनावश्यक विवाद” बताया और कहा कि ऐतिहासिक स्मारकों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। इसके बाद वीएचपी और बजरंग दल ने भी इस मुद्दे को छोड़ने का फैसला किया।
सरकार की प्राथमिकता – कानून-व्यवस्था
महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक, 2024 में अब तक 823 सांप्रदायिक घटनाएं हो चुकी हैं। सरकार अब कानून-व्यवस्था बनाए रखने पर फोकस कर रही है। फिलहाल, औरंगजेब की कब्र विवाद शांत हो गया है और पुलिस ने सुरक्षा कड़ी कर दी है।
इतिहास और राजनीति का टकराव
औरंगजेब की कब्र को हटाने की मांग पहली बार नहीं उठी, लेकिन हर बार यह मुद्दा जल्द शांत हो जाता है। इतिहासकारों के मुताबिक, औरंगजेब का शासन विवादास्पद था, लेकिन उसकी कब्र को लेकर राजनीति करना जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने जैसा है। फिलहाल, यह विवाद थम गया है, लेकिन भविष्य में फिर भड़क सकता है।