अढ़ाई दिन का झोपड़ा: अब प्राचीन मस्जिद में नमाज को लेकर विवाद
राजस्थान के अजमेर में स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा, जिसे देश की सबसे प्राचीन मस्जिदों में से एक माना जाता है, हाल ही में विवाद का केंद्र बन गया है। यह विवाद मस्जिद में नमाज अदा करने और इसके ऐतिहासिक महत्व को लेकर बढ़ा है।
क्या है विवाद?
साल 2024 की शुरुआत में एक जैन साधु ने अढ़ाई दिन का झोपड़ा देखने का प्रयास किया, लेकिन कथित रूप से समुदाय विशेष के लोगों ने उन्हें रोक दिया।
- इस घटना के बाद हिंदू और जैन संतों ने विरोध जताया।
- उन्होंने कहा कि इस ऐतिहासिक इमारत की वास्तुकला में हिंदू और जैन मंदिरों की शैली स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
- उनका दावा है कि इस स्थल को हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर बनाया गया था।
इतिहास और संरचना
अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण 1192 में मोहम्मद गौरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने करवाया था।
- कहा जाता है कि इसे हिंदू और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग करके मस्जिद में परिवर्तित किया गया।
- इसके गर्भगृह और खंभों पर हिंदू देवी-देवताओं और जैन तीर्थंकरों की नक्काशी आज भी दिखाई देती है।
- यह भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है।
जैन समुदाय की आपत्ति
जैन समुदाय ने प्रशासन के सामने विरोध दर्ज करते हुए मांग की:
- अढ़ाई दिन का झोपड़ा में नमाज पढ़ने पर रोक लगाई जाए।
- इसे एक राष्ट्रीय धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित किया जाए।
- हिंदू और जैन धर्म के प्रतीकों को सुरक्षित रखा जाए।
मुस्लिम समुदाय का पक्ष
मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह स्थल मस्जिद है और यहां नमाज पढ़ना उनका धार्मिक अधिकार है।
- उनका तर्क है कि यह संरचना पिछले 800 वर्षों से मस्जिद के रूप में उपयोग की जा रही है।
- इसे लेकर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।
प्रशासन और कानून का रुख
अढ़ाई दिन का झोपड़ा भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित स्थल है, जहां नियमित नमाज की अनुमति नहीं है।
- पर्यटन विभाग ने इसे एक ऐतिहासिक स्थल घोषित किया है, लेकिन धार्मिक गतिविधियों पर रोक लगाने का अधिकार केवल न्यायालय के पास है।
- प्रशासन ने कहा है कि दोनों समुदायों के बीच तनाव को कम करने के लिए बातचीत का रास्ता निकाला जाएगा।
विशेषज्ञों की राय
इतिहासकारों का मानना है कि इस स्थल की संरचना मिश्रित सांस्कृतिक धरोहर का उदाहरण है।
- उन्होंने सुझाव दिया कि इसे धार्मिक विवाद से मुक्त रखते हुए केवल ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए।
क्या होगा आगे?
यह मामला अजमेर के प्रशासन और न्यायालय के सामने है।
- हिंदू और जैन समुदाय ने इस स्थल पर पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा है।
- वहीं, मुस्लिम पक्ष ने इसे मस्जिद मानते हुए धार्मिक अधिकारों की मांग की है।
- प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि मामले का समाधान शांति और सौहार्द के साथ किया जाएगा।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा भारत की सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक धरोहर का प्रतीक है। इसे लेकर जारी विवाद ने एक बार फिर धर्म और इतिहास के बीच संतुलन की चुनौती को उजागर किया है। प्रशासन और न्यायालय से उम्मीद है कि वे इस विवाद का ऐसा समाधान निकालेंगे, जो सांप्रदायिक सौहार्द और ऐतिहासिक धरोहर की रक्षा सुनिश्चित करे।