चुनावी साजिश या रणनीति? कांग्रेस ने AAP को हराने के लिए पहले से बना ली थी योजना!

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP) की करारी हार ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों में इस हार की चर्चा तेज़ हो गई है, और I.N.D.I.A. गठबंधन के कई दल कांग्रेस को इसकी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस ने इस बार रणनीतिक रूप से AAP को कमजोर करने के लिए चुनाव लड़ा था, ताकि दिल्ली में अपना खोया हुआ वोट बैंक वापस पा सके।
कांग्रेस की चुनावी रणनीति: AAP को कमजोर करना था लक्ष्य?
कांग्रेस मामलों को कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार आदेश रावल के अनुसार, कांग्रेस ने काफी पहले ही AAP को हराने की रणनीति बना ली थी। पंजाब और गुजरात इकाई के नेताओं ने राहुल गांधी को समझाया कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक को कमजोर कर रही है। ऐसे में, अगर कांग्रेस को भविष्य में बीजेपी से सीधी टक्कर लेनी है, तो उसे AAP को हराना होगा।
कांग्रेस नेताओं को विश्वास था कि अगर आम आदमी पार्टी दिल्ली में कमजोर होती है, तो इसका फायदा कांग्रेस को गुजरात और पंजाब में भी मिलेगा। दिल्ली में हारने के बाद AAP को इन राज्यों में खुद को एकजुट रखना मुश्किल होगा।
18 सीटों पर बनी थी रणनीति, 14 पर मिली सफलता
आदेश रावल के मुताबिक, कांग्रेस ने दिल्ली की 18 सीटों पर विशेष रणनीति बनाई थी, जहां वह AAP को हराने में सफल हो सकती थी। इन 18 में से 14 सीटों पर कांग्रेस ने AAP को मात देने में सफलता हासिल की। इनमें अरविंद केजरीवाल की नई दिल्ली और मनीष सिसोदिया की जंगपुरा सीट भी शामिल हैं।
नई दिल्ली सीट पर कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को टिकट दिया था। इस सीट पर AAP की हार का अंतर और कांग्रेस के वोटों का आंकड़ा लगभग समान था। विश्लेषकों का मानना है कि अगर संदीप चुनाव न लड़ते, तो अरविंद केजरीवाल अपनी सीट बचा सकते थे।
इसी तरह, जंगपुरा सीट पर भी कांग्रेस के उम्मीदवार फरहाद सूरी को मुस्लिम समुदाय का बड़ा समर्थन मिला। मनीष सिसोदिया यहां सिर्फ 600 से अधिक वोटों से हारे। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में न होता, तो शायद सिसोदिया यह सीट बचा लेते।
क्या 2030 के लिए खुद को मजबूत कर रही है कांग्रेस?
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कांग्रेस की यह रणनीति केवल 2025 तक सीमित नहीं थी। पार्टी लंबे समय से दिल्ली में अपने अस्तित्व को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस नेताओं को उम्मीद है कि अगर AAP दिल्ली में कमजोर होती है, तो 2030 के चुनाव में वह खुद को बीजेपी के खिलाफ मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में पेश कर सकती है।
अब देखना यह होगा कि दिल्ली चुनाव के नतीजों का AAP पर पंजाब और गुजरात में क्या असर पड़ता है और क्या कांग्रेस की यह रणनीति उसे आने वाले वर्षों में बड़ा फायदा पहुंचाएगी या नहीं।