महाराष्ट्र की राजनीति में नया विवाद: नितेश राणे के बयान पर अजित पवार की कड़ी प्रतिक्रिया

महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता और राज्य के कैबिनेट मंत्री नितेश राणे के बयान ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। राणे ने दावा किया था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में कोई मुसलमान शामिल नहीं था। उनके इस बयान पर उपमुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख अजित पवार ने कड़ी नाराजगी जताई और इसे ‘भ्रामक’ करार दिया।
अजित पवार ने दी नसीहत, बोले- सांप्रदायिक सौहार्द न बिगाड़ें
कराड में कांग्रेस के दिग्गज नेता और महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण की जयंती पर श्रद्धांजलि देने के बाद पत्रकारों से बातचीत में अजित पवार ने कहा कि शिवाजी महाराज ने कभी जाति या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि शिवाजी की सेना और प्रशासन में मुसलमानों की भी अहम भूमिका थी।
अजित पवार ने आगे कहा,
“महाराष्ट्र में बड़ी संख्या में देशभक्त मुसलमान रहते हैं। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि शिवाजी महाराज के शासनकाल में कई मुसलमान महत्वपूर्ण पदों पर थे, जिनमें से कुछ उनके शस्त्रागार विभाग की देखरेख भी करते थे।”
उन्होंने राजनीतिक नेताओं को संयम बरतने की सलाह देते हुए कहा कि सत्ता में हों या विपक्ष में, सभी नेताओं को ऐसे भड़काऊ बयानों से बचना चाहिए, जो सांप्रदायिक तनाव पैदा कर सकते हैं।
महायुति सरकार में बढ़ते मतभेद
राणे के इस बयान से महाराष्ट्र की सत्तारूढ़ महायुति सरकार (भाजपा-शिवसेना-एनसीपी गठबंधन) के भीतर दरारें और गहरी होती नजर आ रही हैं। पहले से ही राजनीतिक संतुलन साधने में जुटी महायुति के लिए यह नया विवाद परेशानी बढ़ा सकता है।
हलाल मीट बनाम झटका मटन विवाद भी गरमाया
नितेश राणे हाल ही में हलाल मीट के खिलाफ अभियान चला रहे हैं और झटका मटन को प्रमोट करने में लगे हुए हैं। उनके इस अभियान को हिंदू वोटरों को साधने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, जबकि अजित पवार अभी भी अपनी सेक्युलर राजनीति की छवि बनाए रखना चाहते हैं।
क्या यह नया सियासी मोर्चा खोलने की तैयारी?
विश्लेषकों का मानना है कि नितेश राणे का यह बयान दक्षिणपंथी राजनीति को और आक्रामक बनाने का प्रयास हो सकता है। वहीं, अजित पवार की प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि महाराष्ट्र में सत्ताधारी दलों के भीतर ही वैचारिक मतभेद गहरे हो रहे हैं।
अब देखना होगा कि इस विवाद का महाराष्ट्र की राजनीति पर क्या असर पड़ता है और क्या महायुति सरकार इस मुद्दे पर एकजुट रह पाएगी या नहीं।