महाबोधी महाविहार बौद्ध समाज को सौंपो: लोणार तहसील कार्यालय पर हजारों वंचित कार्यकर्ताओं का मोर्चा
लोणार प्रतिनिधि – फिरदोस खान पठान

लोणार: महाबोधी महाविहार, बोधगया, जो बौद्ध समाज के लिए पवित्र स्थल है, 1949 के अधिनियम के तहत अन्य धर्मावलंबियों के नियंत्रण में है। यह वही पावन भूमि है, जहां भगवान गौतम बुद्ध को संबोधि (ज्ञान) प्राप्त हुआ था। सम्राट अशोक ने लगभग 2300 वर्ष पहले इस स्थल पर महाबोधी महाविहार का निर्माण कराया था। लेकिन 1949 के कानून के कारण यह विहार बौद्ध समाज के नियंत्रण में नहीं है।
देशभर में महाबोधी महाविहार को मुक्त कराने के लिए आंदोलन तेज हो गया है। इसी संदर्भ में लोणार में भी भाई महेंद्र पनाड के नेतृत्व में विशाल मोर्चा निकाला गया। यह मोर्चा लोणार बस स्टैंड से शुरू हुआ, जिसमें हजारों समाजबंधु शामिल हुए। पूरे लोणार शहर में “महाबोधी महाविहार मुक्त करो… मुक्त करो… महाबोधी महाविहार बौद्ध समाज को सौंपो… सौंपो…” जैसे गगनभेदी नारे गूंज उठे।
मोर्चा तहसील कार्यालय पहुंचकर जनसभा में परिवर्तित हो गया। सभा का प्रारंभ युवा तालुका महासचिव पवन भाऊ अवसरमोल के प्रस्ताविक भाषण से हुआ, जिसमें उन्होंने महाबोधी विहार का विस्तृत इतिहास बताया। इसके बाद प्रवीण भाऊ अवसरमोल, राहुल अवसरमोल, रुक्मिणीबाई मोरे, मालती ताई कळंबे, जनाताई अंभोरे, उषाताई नरवाडे ने अपने विचार व्यक्त किए।
महेंद्र पनाड का चेतावनी भरा संबोधन
इसके बाद भाई महेंद्र पनाड ने समाजबंधुओं को संबोधित करते हुए कहा कि “अगर बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने हमारी मांगें जल्द नहीं मानीं और महाबोधी महाविहार को बौद्ध समाज को सौंपने की प्रक्रिया शुरू नहीं की, तो हम अंतिम सांस तक संघर्ष जारी रखेंगे।”
इसके बाद पूज्य भदंत प्रियदर्शी ने सभी समाजबंधुओं को शील प्रदान किया और तहसीलदार के माध्यम से बिहार सरकार को ज्ञापन सौंपा गया। सभा का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस सभा का प्रभावी संचालन सागर पनाड ने किया।
मोर्चे को सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान
इस ऐतिहासिक मोर्चे को सफल बनाने के लिए तालुका अध्यक्ष दिलीप राठौड़, युवा महासचिव पवन अवसरमोल, युवा तालुका अध्यक्ष गौतम गवई, रिपब्लिकन सेना अध्यक्ष अशोक जावले, शिवप्रसाद वाठोरे, सुनील देहाडे, अमित काकड़े (भीम आर्मी), अमितेश अंभोरे, वैभव मस्के, मंगेश सरदार, नारायण नरवाडे, रमेश प्रधान, नितीन नरवाडे, शुभम अवसरमोल, आकाश मोरे, तुषार अंभोरे, दीपक दत्ता अंभोरे, अशोक सरदार, मेजर सुदेश इंगळे, सरस्वतीबाई इंगळे, शोभाबाई प्रधान, पंढरी मस्के, विलास चव्हाण, प्रफुल्ल इंगळे, भीमराव इंगळे, नितीन बनसोडे, अशोक कांबळे, विठ्ठल लांडगे, सतीश लांडगे, भीमराव वाठोरे, श्रीराम पनाड, डी.के. पनाड, रमेश पनाड, अरुण पनाड, गयाबाई सदावर्ते, किशोर मोरे, ऋषिकेश अवसरमोल, नर्मदाबाई अवसरमोल, नमो अवसरमोल, मिलिंद मोरे, भीमराव जाधव, शोभाबाई जाधव, प्रल्हाद सरदार, दीपक मोरे, संजय मोरे, सागरबाई चाटशे, संबोधी महिला मंडल लोणार, प्रताप अवसरमोल व उनके सभी सहयोगी, कैलास वानखेडे, भाऊराव पंडागळे, देवानंद नरवाडे, बालाजी नरवाडे, भारत साळवे, संदीप सदावर्ते, राजेंद्र सदावर्ते, रमेश इंगळे, बाळू वानखेडे, दिलीप पगारे, सुशील आनंदराव समेत हजारों बौद्ध अनुयायियों ने भाग लिया।
इस मोर्चे के बाद बौद्ध समाज की मांगों को लेकर एक नई चेतना जागृत हो गई है और आंदोलन को और तेज करने की तैयारी हो रही है।