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ईद पर मोदी सरकार की ‘सौगात-ए-मोदी’, विपक्ष ने बताया ‘चुनावी लॉलीपॉप’

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अल्पसंख्यक मोर्चा ने रमजान और आगामी ईद, गुड फ्राइडे, ईस्टर, नवरोज़ तथा भारतीय नववर्ष के अवसर पर ‘सौगात-ए-मोदी’ अभियान लॉन्च किया है। इस योजना के तहत पार्टी देशभर में 32 लाख जरूरतमंद मुस्लिम परिवारों तक सहायता पहुंचाने की तैयारी कर रही है। इस पहल के तहत जिला स्तर पर ईद मिलन समारोह का भी आयोजन किया जाएगा, जिससे समाज में सौहार्द का संदेश दिया जा सके।

हालांकि, इस योजना पर विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, टीएमसी सांसद कीर्ति आजाद, और सांसद अफजाल अंसारी समेत कई नेताओं ने इस पहल को ‘राजनीतिक ड्रामा’ करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार अल्पसंख्यकों को ‘ड्राई फ्रूट’ की सौगात देकर लुभाने की कोशिश कर रही है, जबकि असल जरूरत शिक्षा, रोजगार और न्याय की है।

क्या विपक्ष का विरोध जायज है?

विपक्षी दलों का मानना है कि यह अभियान चुनावी रणनीति का हिस्सा है, खासकर बिहार में आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए। समाजवादी पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी ने कहा, “अगर बीजेपी को सच में मुसलमानों की फिक्र होती, तो वह उन्हें उनके हक दिलाने का काम करती, न कि सिर्फ ईद पर सौगात बांटने का दिखावा करती।”

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी का यह कदम महज वोट पाने के लिए नहीं है, बल्कि पार्टी अपने ‘सबका साथ, सबका विकास’ एजेंडे को मजबूत करने के लिए अल्पसंख्यकों तक पहुंचना चाहती है। बीजेपी पहले भी अल्पसंख्यकों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए विभिन्न योजनाएं चला चुकी है।

मोदी सरकार की मुस्लिम नीति में बदलाव?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में सूफी सम्मेलन और चर्च कार्यक्रमों में शामिल हुए थे। वहां उन्होंने इस्लाम को शांति का धर्म बताते हुए कहा था कि “आतंकवाद और धर्म का कोई संबंध नहीं है।” यह बयान बीजेपी के पारंपरिक हिंदुत्ववादी समर्थकों के लिए असामान्य था, जिससे यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि मोदी सरकार अब अल्पसंख्यकों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मोदी सरकार ‘सेफ्टी वॉल्व थ्योरी’ के तहत यह कदम उठा रही है। इसके जरिए वह वक्फ बोर्ड बिल, औरंगजेब की कब्र और समान नागरिक संहिता जैसे विवादित मुद्दों पर मुस्लिम समाज के विरोध को कम करने की कोशिश कर रही है। हालांकि, बीजेपी के भीतर ही एक धड़ा ऐसा भी है जो नहीं चाहता कि पार्टी इस तरह के कदम उठाए।

क्या सौगात-ए-मोदी से बीजेपी को नुकसान होगा?

बीजेपी का एक वर्ग इस अभियान से नाराज हो सकता है, क्योंकि पार्टी की छवि आमतौर पर मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ रही है। इसके बावजूद, मोदी सरकार का यह कदम 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की योजना का हिस्सा हो सकता है, जिसमें देश की पूरी आबादी को साथ लेकर चलना जरूरी है।

निष्कर्ष

‘सौगात-ए-मोदी’ अभियान पर विपक्ष और सरकार के तर्क अलग-अलग हैं। जहां एक तरफ बीजेपी इसे सामाजिक सद्भाव और अल्पसंख्यकों तक पहुंचने का प्रयास बता रही है, वहीं विपक्ष इसे एक चुनावी स्टंट करार दे रहा है। असली सवाल यह है कि क्या मुस्लिम समुदाय इस योजना को सकारात्मक रूप से लेगा, या इसे सिर्फ एक और राजनीतिक लॉलीपॉप समझेगा। आने वाले दिनों में इस अभियान का असर राजनीतिक समीकरणों पर साफ नजर आएगा।


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