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पुलिस का तमाशा! औरंगाबाद में आरोपियों का सार्वजनिक अपमान, संवैधानिक अधिकारों पर उठे सवाल

औरंगाबाद: (रिपोर्ट–नाजिम काज़ी) गणेशोत्सव के दौरान शहर में नशे का कारोबार करने वाले आरोपियों को गिरफ्तार करने के बाद सोमवार को पुलिस ने तीन आरोपियों की सार्वजनिक धिंड कटकट गेट क्षेत्र से निकाली। इस घटना ने शहर में खलबली मचा दी है और इस कार्रवाई को लेकर पुलिस पर संवैधानिक और न्यायालयीन प्रावधानों के उल्लंघन के आरोप लग रहे हैं।

मुकुंदवाड़ी थाने के अंबिकानगर इलाके में रविवार रात पुलिस ने मोहम्मद मुजम्मील मोहम्मद नजीर (34), लोमान उर्फ नोमान खान इरफान खान (21), मोहम्मद लईखुद्दीन मोहम्मद मिराजोद्दीन (25), शेख रेहान शेख अश्फाक (19) और शेख सुलताना शेख मैनोद्दीन को गिरफ्तार किया था। उनके पास से पुलिस ने 15 लाख रुपये की कीमत की 1.5 किलो चरस और दो बाइक जब्त कीं।

अगले दिन यानी सोमवार को इनमें से तीन आरोपियों – मुजम्मील, लईखुद्दीन और रेहान – की धिंड निकाली गई। पुलिस ने उनके चेहरे ढके बिना उन्हें मुस्लिम बहुल कटकट गेट इलाके से घुमाया। आरोपी लगातार अपमान न करने की गुहार लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उनकी एक न सुनी। इस दौरान एंटी-नारकोटिक्स टीम की प्रमुख इंस्पेक्टर गीता बागवड़े ने लोगों से अपील की कि यदि कहीं नशे के पदार्थों की बिक्री हो रही है तो तुरंत पुलिस को सूचना दें।

कानून विशेषज्ञों का कहना है कि पुलिस की यह कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21 (मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार) और अनुच्छेद 14-15 (समानता का अधिकार और धर्म के आधार पर भेदभाव पर रोक) का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने DK Basu बनाम पश्चिम बंगाल (1997) मामले में स्पष्ट कहा था कि गिरफ्तारी के बाद आरोपियों की सार्वजनिक परेड मानवाधिकारों का हनन है। राजस्थान हाईकोर्ट ने भी Shyam Singh केस (2006) में ऐसी कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने भी आरोपी की सार्वजनिक बेइज्जती या मीडिया परेड पर प्रतिबंध लगाया है।

इस मामले में खासकर यह सवाल उठ रहा है कि सभी आरोपी मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद उनकी धिंड मुस्लिम बहुल इलाके में ही क्यों निकाली गई। इससे पुलिस पर जानबूझकर समुदाय विशेष को निशाना बनाने का आरोप लग रहा है। इसका असर सामाजिक सौहार्द पर पड़ सकता है और पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

नशा-विरोधी कार्रवाई निस्संदेह जरूरी है, लेकिन पुलिस कानून की रक्षा करने के बावजूद यदि आरोपियों का सार्वजनिक अपमान करती है तो यह संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इस मामले में मानवाधिकार आयोग या अदालत में शिकायत की संभावना जताई जा रही है।

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