RTI की हत्या! अब घोटाले उजागर करने पर लगेगा 500 करोड़ का जुर्माना?

नई दिल्ली। सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 को पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था, लेकिन अब डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट (DPDP Act), 2023 के तहत इसमें किए गए संशोधनों को लेकर भारी विवाद खड़ा हो गया है। सरकार का दावा है कि नया कानून नागरिकों की निजी जानकारी की सुरक्षा के लिए लाया गया है, लेकिन विशेषज्ञों और RTI कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह जनता के सूचना के अधिकार को कमजोर करने का प्रयास है।
क्या है नया डेटा प्रोटेक्शन एक्ट?
डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 को संसद में पारित किया गया, जिसका उद्देश्य नागरिकों की निजी जानकारी को सुरक्षित रखना है। इस कानून के तहत, सरकार और निजी संस्थाएं नागरिकों का डेटा कैसे इकट्ठा, संग्रहीत और इस्तेमाल करेंगी, इसके कड़े नियम बनाए गए हैं।
इस कानून में मुख्य प्रावधान:
- निजी डेटा की सुरक्षा: किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी को बिना सहमति के साझा नहीं किया जा सकता।
- सरकारी छूट: केंद्र सरकार को यह अधिकार है कि वह कुछ संस्थानों या एजेंसियों को इस कानून से बाहर रख सकती है।
- भारी जुर्माने का प्रावधान: यदि कोई संस्था डेटा सुरक्षा नियमों का उल्लंघन करती है, तो उस पर 500 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- RTI अधिनियम में संशोधन: RTI के तहत अब किसी भी सरकारी अधिकारी या संस्था से जुड़ी “व्यक्तिगत” जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी।
RTI कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की चिंताएं
RTI कार्यकर्ताओं और खोजी पत्रकारों का मानना है कि इस कानून के जरिए सरकार की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी और भ्रष्टाचार को उजागर करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत कुमार ने कहा, “इस कानून के बाद RTI का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। अब सरकार के खिलाफ सवाल उठाने वालों को भारी जुर्माने का डर दिखाकर चुप करा दिया जाएगा।”
NCPRI (नेशनल कैंपेन फॉर पीपल्स राइट टू इंफॉर्मेशन) की अंजलि भारद्वाज ने कहा, “अगर यह कानून लागू हुआ, तो RTI का दायरा सिमट जाएगा और खोजी पत्रकारिता पर सीधा हमला होगा।”
RTI में क्या बदलेगा?
इस कानून के लागू होने से RTI के तहत अब कोई भी सरकारी अधिकारी बैंक घोटाले, राशन कार्ड धोखाधड़ी, वोटर लिस्ट में गड़बड़ी जैसी जानकारियों को “व्यक्तिगत डेटा” बताकर देने से मना कर सकता है।
- अब किसी भी सरकारी अधिकारी की सैलरी, संपत्ति, ट्रांसफर या पोस्टिंग से जुड़ी जानकारी नहीं मांगी जा सकेगी।
- सरकार तय करेगी कि कौन-सी जानकारी सार्वजनिक की जाएगी और कौन-सी नहीं।
- यदि किसी ने इस कानून का उल्लंघन किया, तो 500 करोड़ तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
क्या कह रही है सरकार?
सरकार का दावा है कि इस कानून से नागरिकों की गोपनीयता मजबूत होगी और डिजिटल फ्रॉड को रोका जा सकेगा। सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “यह कानून आम जनता के हित में है। इससे नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी लीक होने से बचेगी और उनका डिजिटल डेटा सुरक्षित रहेगा।”
लोकतंत्र पर खतरा?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कानून से RTI अधिनियम का मूल उद्देश्य ही खत्म हो सकता है। पहले ही RTI कानून में कई बदलाव किए जा चुके हैं, जिससे इसकी धार कमजोर हो गई है।
- RTI कार्यकर्ताओं की हत्या और उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं।
- सूचना आयोगों को सरकार के पक्ष में काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
- अब सरकारी नीतियों पर सवाल उठाना और भ्रष्टाचार उजागर करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
जनता में बढ़ रहा विरोध
देशभर के RTI कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और नागरिक संगठनों ने सरकार से इस कानून को वापस लेने की मांग की है। उनका कहना है कि यह कानून भ्रष्टाचार को बढ़ावा देगा और सरकार की जवाबदेही खत्म कर देगा।
निष्कर्ष:
डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 के लागू होने से RTI अधिनियम की पारदर्शिता पर गहरा असर पड़ सकता है। यह कानून नागरिकों की गोपनीयता की रक्षा करता है, लेकिन RTI के दायरे को सीमित करता है। सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि जनता का सूचना का अधिकार सुरक्षित रहे और लोकतंत्र मजबूत बना रहे।