मराठवाड़ा से फिर छीना हक का पानी, जल प्राधिकरण ने दोनों याचिकाएं खारिज कीं

औरंगाबाद: मराठवाड़ा को उसके हक का पानी दिलाने के लिए वर्ष 2018 में मराठवाड़ा जनता परिषद द्वारा दाखिल की गई दो अलग-अलग याचिकाओं को महाराष्ट्र जलसंपदा विनियामक प्राधिकरण (MWRR) ने हाल ही में खारिज कर दिया है। इस फैसले को याचिकाकर्ता डॉ. शंकरराव नागरे ने मराठवाड़ा के लिए अन्यायकारक और एकपक्षीय बताया है।
मराठवाड़ा जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र के लिए नाशिक जिले में भाम, भावली, मुकणे और वाकी जैसे चार बांध बनाए गए थे। लेकिन भावली बांध का पानी ठाणे जिले के शहापुर की ओर मोड़ दिया गया। इसके खिलाफ मजविप की ओर से डॉ. नागरे ने 2018 में प्राधिकरण के सामने याचिका दायर की थी। इसी बीच राज्य सरकार ने 20 जुलाई 2019 को एक शासनादेश जारी कर यह निर्णय लिया था कि कम बारिश वाले क्षेत्रों के लिए बने बांधों का पानी अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में नहीं दिया जाएगा। इस आधार पर मराठवाड़ा की याचिका मजबूत थी। लेकिन आठ वर्षों बाद प्राधिकरण ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि मराठवाड़ा को वैतरणा और मुकणे परियोजनाओं से पानी दिया जाएगा, ऐसे में शहापुर को पानी देने का विरोध उचित नहीं है।
इसी तरह, डॉ. नागरे ने 2018 में कृष्णा घाटी से जुड़े पानी के बंटवारे पर भी एक याचिका दाखिल की थी। याचिका में मांग की गई थी कि कृष्णा घाटी का पानी सभी जिलों को समान रूप से दिया जाए। वर्तमान स्थिति में पुणे जिले का लगभग 70% क्षेत्र, जबकि सोलापुर, सातारा, कोल्हापुर और सांगली का 40 से 50% क्षेत्र सिंचित है। इसके उलट, मराठवाड़ा के धाराशिव और बीड जिलों में केवल 18% क्षेत्र ही सिंचाई के दायरे में है। इसके बावजूद प्राधिकरण ने इस याचिका को भी यह कहकर खारिज कर दिया कि सभी जिलों को समान पानी देना संभव नहीं है।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. शंकरराव नागरे ने कहा—
“राज्य सरकार ने जल आराखड़े में स्पष्ट नीति बनाई है कि कम बारिश वाले क्षेत्र के बांधों से पानी अन्य क्षेत्रों को नहीं दिया जाएगा और इस पर 2019 में शासनादेश भी जारी किया गया है। ऐसे में भावली बांध का पानी शहापुर को देना और कृष्णा घाटी में समान पानी न देने का निर्णय अन्यायपूर्ण है। इस फैसले के खिलाफ हम उच्च न्यायालय में दाद मांगेंगे।”
