नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में, बॉम्बे हाई कोर्ट का अहम फैसला
बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया कि अगर कोई पुरुष 18 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ सहमति से भी यौन संबंध बनाता है, तो उसे बलात्कार माना जाएगा। कोर्ट ने यह निर्णय वर्धा जिले से जुड़े एक आपराधिक अपील मामले की सुनवाई के दौरान दिया।
कोर्ट का रुख: सहमति और विवाह का बचाव नहीं मान्य
नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति गोविंद सनप ने 12 नवंबर को पारित आदेश में कहा,
“18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ यौन संबंध बलात्कार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर पत्नी होने का दावा या सहमति, इस अपराध से बचाव के रूप में स्वीकार्य नहीं है।”
कोर्ट ने दोषी की उस दलील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने कहा था कि पीड़िता उसकी पत्नी थी और उनके बीच सहमति थी।
मामला: विवाह का झांसा और जबरन संबंध
इस केस में आरोपी को 2019 में गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप था कि उसने एक नाबालिग लड़की के साथ जबरन यौन संबंध बनाए और विवाह का झांसा देकर यह सिलसिला जारी रखा। जब पीड़िता 31 सप्ताह की गर्भवती हुई, तो आरोपी ने गर्भपात के लिए दबाव बनाया।
लड़की ने शादी के लिए अनुरोध किया, जिसके बाद आरोपी ने एक फर्जी विवाह का नाटक किया। लेकिन गर्भपात के इनकार के बाद उसने पीड़िता पर शारीरिक और मानसिक हिंसा शुरू कर दी। अंततः पीड़िता ने अपने माता-पिता के साथ पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।
निचली अदालत का फैसला बरकरार
वर्धा जिले की निचली अदालत ने 2021 में आरोपी को बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) के तहत दोषी ठहराया था। इस फैसले को आरोपी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाई कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों की भूमिका
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2017 में स्पष्ट किया था कि यदि पत्नी नाबालिग है, तो सहमति से यौन संबंध भी बलात्कार होगा। हालांकि, मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट की एक अलग पीठ ने इसी प्रकार के मामले में संबंधों को बलात्कार मानने से इनकार किया था।
मुस्लिम पर्सनल लॉ और नाबालिग निकाह की बहस
भारत में विवाह के लिए महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष निर्धारित है। लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) के तहत 15 वर्ष की लड़की को, प्यूबर्टी हासिल करने के बाद, विवाह के योग्य माना जाता है।
2022 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की उम्र में निकाह को मान्यता दी थी। हालांकि, अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों से ऊपर माना और 15 साल की उम्र में निकाह को अस्वीकार कर दिया।
बाल विवाह रोकथाम अधिनियम
भारत सरकार ने 2006 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू किया, जिसके तहत शादी के समय महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष होनी चाहिए। यह अधिनियम बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है।
न्यायिक दृष्टिकोण और सामाजिक संदेश
बॉम्बे हाई कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि नाबालिगों के साथ किसी भी प्रकार का यौन संबंध चाहे सहमति से हो या शादी के दायरे में, वह अपराध है। यह निर्णय न केवल कानून की व्याख्या को मजबूत करता है, बल्कि बाल विवाह और यौन शोषण की समस्या पर जागरूकता बढ़ाने में भी अहम भूमिका निभाएगा।