सिल्लोड विधानसभा: अब्दुल सत्तार की मुश्किल जीत, शिवसेना (यूबीटी) और सहयोगी भाजपा से एक साथ लड़ी जंग
महाराष्ट्र की सिल्लोड विधानसभा सीट पर शिवसेना (शिंदे गुट) के नेता और राज्य मंत्री अब्दुल सत्तार ने कड़े मुकाबले में शिवसेना (यूबीटी) के उम्मीदवार सुरेश बनकर को महज 2420 वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की। यह जीत अब्दुल सत्तार के लिए खास इसलिए मानी जा रही है, क्योंकि उन्हें न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (यूबीटी) का सामना करना पड़ा, बल्कि सहयोगी पार्टी भाजपा के साथ अंदरूनी खींचतान से भी निपटना पड़ा।
तनाव भरे रिश्तों के बीच अब्दुल सत्तार की जीत
अब्दुल सत्तार और भाजपा के बीच रिश्ते पिछले कुछ महीनों में तनावपूर्ण रहे हैं। खासतौर पर जालना लोकसभा सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता रावसाहेब दानवे की हार के बाद यह तनाव और बढ़ गया। दानवे ने अब्दुल सत्तार पर उनकी हार में भूमिका निभाने का आरोप लगाया था। इसके बाद विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी देखने को मिली।
उद्धव ठाकरे का हमला
चुनाव प्रचार के दौरान शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अब्दुल सत्तार पर तीखा हमला किया। उन्होंने अब्दुल सत्तार को सिल्लोड क्षेत्र के लिए “कलंक” बताते हुए भाजपा से उन्हें सत्ता से हटाने की अपील की थी। ठाकरे ने अपने उम्मीदवार सुरेश बनकर को समर्थन देने के लिए क्षेत्र में कई जनसभाएं भी कीं।
इतिहास और मतदान प्रतिशत
इस बार सिल्लोड सीट पर करीब 80% मतदान हुआ, जो मतदाताओं की बड़ी भागीदारी को दर्शाता है। अब्दुल सत्तार ने 2009 और 2014 में कांग्रेस के टिकट पर यह सीट जीती थी। इसके बाद वे शिवसेना (अविभाजित) में शामिल हुए और 2019 में भी इस सीट पर जीत दर्ज की।
2022 में जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के विधायकों के साथ बगावत की और भाजपा से गठबंधन कर लिया, तब अब्दुल सत्तार शिंदे गुट का हिस्सा बन गए। इस बगावत के चलते महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी।
चुनाव के मायने
सिल्लोड की यह जीत अब्दुल सत्तार के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि उन्हें भाजपा से मिले कमजोर समर्थन और शिवसेना (यूबीटी) के तीखे हमलों का सामना करना पड़ा। यह जीत बताती है कि अब्दुल सत्तार ने न केवल अपनी राजनीतिक पकड़ बनाए रखी, बल्कि विरोधियों के दबाव में भी चुनावी सफलता हासिल की।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा और अब्दुल सत्तार के बीच खटास भरे रिश्ते किस दिशा में जाते हैं। साथ ही, यह चुनाव महाराष्ट्र की राजनीति में शिंदे और उद्धव गुट के बीच जारी संघर्ष का एक और अध्याय जोड़ता है।