सिर्फ काशी, मथुरा और अयोध्या ही हमारा लक्ष्य, भागवत के बयान पर विश्व हिंदू परिषद का रुख
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर-मस्जिद विवादों पर बार-बार बहस छेड़ने को अस्वीकार्य बताते हुए गुरुवार (19 दिसंबर, 2024) को एकता और सद्भाव पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर जोर दिया। अब विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने भी भागवत के इस विचार का समर्थन करते हुए विवादित मुद्दों पर संयम बरतने की बात कही है।
भागवत की अपील
मोहन भागवत ने ऐसे मुद्दों पर बार-बार विभाजनकारी बहस करने से बचने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि समाज को इन विषयों को भड़काने के बजाय एकता और सद्भाव पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
वीएचपी का समर्थन
वीएचपी के संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने भागवत के विचारों को दोहराते हुए कहा कि ये मुद्दे ऐतिहासिक महत्व के हैं, लेकिन इन्हें कोर्ट के माध्यम से सुलझाने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि 1984 में वीएचपी ने केवल तीन मंदिरों—अयोध्या, काशी, और मथुरा—के पुनः प्राप्ति का संकल्प लिया था। राम जन्मभूमि पर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सफलता मिली, और उसके बाद से संगठन ने किसी नए आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया।
आक्रांताओं की भूमिका पर बयान
सुरेंद्र जैन ने कहा कि मुस्लिम नेताओं को भी यह स्वीकार करना चाहिए कि ऐतिहासिक आक्रमणों के दौरान कई मंदिर नष्ट हुए। उन्होंने मथुरा और काशी में चल रहे संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि समाज को कोर्ट के निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए और किसी भी प्रकार के भड़काऊ बयान या सड़क पर विरोध प्रदर्शन से बचना चाहिए।
समाज के लिए संदेश
वीएचपी और आरएसएस ने स्पष्ट किया कि उनकी प्राथमिकता समाज में सौहार्द और शांति बनाए रखना है। उन्होंने सभी समुदायों से अपील की कि वे संयम बरतें और कानून पर भरोसा करें। सुरेंद्र जैन ने कहा, “सरसंघचालक की सलाह सद्भाव बनाने की दिशा में है, जिसे सभी पक्षों को स्वीकार करना चाहिए।”
आरएसएस और वीएचपी के बयानों से यह स्पष्ट है कि संगठन किसी भी प्रकार के तनाव या आंदोलन को बढ़ावा देने के बजाय कानूनी और शांतिपूर्ण समाधान का पक्षधर है। यह बयान समाज में शांति और स्थिरता बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।