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“अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला” – वक्फ बिल के खिलाफ जमीयत उलेमा-ए-हिंद मुखर

नई दिल्ली: केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने बुधवार (2 अप्रैल, 2025) को लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया, जिसे लेकर राजनीतिक और धार्मिक संगठनों में उबाल आ गया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया, जबकि मुस्लिम संगठन भी मोदी सरकार पर हमलावर हैं।

मौलाना महमूद मदनी का बड़ा बयान

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने इस विधेयक को “अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक” करार दिया। उन्होंने कहा, “संसद में पेश किया गया वक्फ बिल मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है। सरकार अपने संख्यात्मक बहुमत के दम पर इसे पारित कराने की कोशिश कर रही है, जो न्यायसंगत नहीं है।”

‘जबर्दस्ती संसद में लाया गया बिल’

मदनी ने इस विधेयक को बहुसंख्यकवादी मानसिकता (मेजॉरिटेरियन एप्रोच) पर आधारित बताते हुए कहा, “इस बिल को जबरन संसद में लाया गया है, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों को छीनना है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और मुसलमानों के खिलाफ एक नकारात्मक रुख को दर्शाता है।”

‘बिल पूरी तरह अस्वीकार्य’

उन्होंने कहा, “हम इस बिल को पूरी तरह खारिज करते हैं। पुराने कानून में सुधार की जरूरत थी, लेकिन सरकार ने ऐसे संशोधन किए हैं जो समस्याओं को हल करने के बजाय और जटिल बना रहे हैं। हम इस अन्याय के खिलाफ हर संवैधानिक और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज उठाते रहेंगे।”

बिल पर सियासी घमासान जारी

विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों के विरोध के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस विधेयक पर आगे क्या रुख अपनाती है और विपक्ष इसका किस तरह विरोध करता है।

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