औरंगाबाद: जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र पर संकट गहराया, 2,300 फाइलें अटकीं, नागरिक दर-दर भटकने को मजबूर

औरंगाबाद जिले में जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र को लेकर पिछले आठ महीनों से राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोपों ने तूल पकड़ा है। इसी के चलते उपविभागीय अधिकारी व्यंकट राठोड के कार्यालय में करीब 2,300 प्रमाणपत्रों की फाइलें लंबित पड़ी हैं। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यह किसकी अवकृपा है, जिसकी वजह से आम नागरिकों को दर-दर भटकना पड़ रहा है। राजनीतिक दबाव के कारण प्रशासनिक अधिकारी भी अब जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जारी करने में सतर्कता बरत रहे हैं।
घाटी अस्पताल प्रशासन की ओर से न केवल विलंबित प्रमाणपत्रों बल्कि नियमित प्रमाणपत्रों के लिए भी नागरिकों को उपविभागीय कार्यालय भेजा जा रहा है। वहीं उपविभागीय कार्यालय का कहना है कि नियमित प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार उनके पास नहीं है और नागरिकों को घाटी अस्पताल ही जाना चाहिए। ऐसे में लोगों को बार-बार चक्कर काटने पड़ रहे हैं, लेकिन समस्या का कोई ठोस समाधान सामने नहीं आ रहा।
घाटी अस्पताल में रोजाना मराठवाड़ा और अन्य जिलों की महिलाओं की प्रसूतियां होती हैं। वहीं, उपचार के दौरान मौत के मामलों में भी यहीं से मृत्यु प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। नियम के अनुसार, जन्म या मृत्यु एक साल के भीतर हुई हो तो प्रमाणपत्र घाटी अस्पताल से मिलता है, लेकिन एक साल से अधिक समय बीत जाने पर आवेदन उपविभागीय कार्यालय में करना पड़ता है।
बुधवार को कई नागरिक उपविभागीय कार्यालय पहुंचे थे। इनमें कुछ ऐसे भी थे जिनके बच्चों का जन्म केवल छह से सात महीने पहले घाटी में हुआ था, बावजूद इसके उन्हें भी उपविभागीय कार्यालय भेज दिया गया।
मार्च 2025 से पहले केवल 4 से 5 दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणपत्र जारी किए जाते थे, लेकिन मार्च 2025 के बाद शासन के नए अध्यादेश के तहत अब 18 दस्तावेजों की आवश्यकता होती है।
उपविभागीय अधिकारी व्यंकट राठोड का कहना है कि जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र देने का निर्णय शासन के आदेशों के अनुसार ही लिया जाएगा।
