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“जातिगत खाई खत्म करो, आर्थिक आधार पर आरक्षण लाओ” – खान एजाज़ अहमद

आर्थिक आधार पर आरक्षण ही सच्चा न्याय – खान एजाज़ अहमद
भारत जैसे लोकतांत्रिक और विविधता से भरे देश में आरक्षण हमेशा से सामाजिक न्याय का एक अहम साधन रहा है। इसका उद्देश्य उन वर्गों को मुख्यधारा में लाना था, जो वर्षों से उपेक्षित और वंचित रहे। लेकिन समय के साथ यह व्यवस्था जातिगत सीमाओं में बंधकर रह गई है। आज जरूरत है कि इस पर गहन मंथन किया जाए और आरक्षण का आधार जाति नहीं, बल्कि आर्थिक स्थिति बनाया जाए।
यह विचार CMBC प्लेटफॉर्म के डायरेक्टर तथा खासदार टाईम्स के संपादक खान एजाज़ अहमद ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि –
जातिगत आरक्षण की सीमाएँ
- आज कई ऐसे परिवार हैं, जो जातिगत आरक्षण का लाभ उठाते हुए समृद्ध हो चुके हैं, लेकिन फिर भी उसी सुविधा का लाभ लेते हैं।
- दूसरी ओर ऐसे हजारों गरीब परिवार हैं, जो केवल जाति के कारण इस लाभ से वंचित रहते हैं।
- इससे समाज में असमानता और असंतोष की एक नई खाई बन रही है।
गरीबी ही असली पैमाना क्यों?
- गरीबी जाति नहीं देखती – चाहे कोई भी धर्म या जाति हो, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों को समान संघर्ष करना पड़ता है।
- सच्चे लाभार्थियों तक पहुँचेगा हक – आर्थिक आधार पर आरक्षण देने से वही लोग लाभान्वित होंगे जिन्हें वास्तव में इसकी आवश्यकता है।
- जातिगत खाई कम होगी – जब जाति की जगह आर्थिक स्थिति को आधार बनाया जाएगा, तो समाज में भाईचारा और समानता मजबूत होगी।
आगे की दिशा
- आरक्षण व्यवस्था की नई समीक्षा कर इसे पूरी तरह से आर्थिक स्थिति आधारित किया जाना चाहिए।
- जिनकी पारिवारिक आय निर्धारित सीमा से कम है, उन्हें शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य योजनाओं में प्राथमिकता दी जाए।
- पहले से समृद्ध वर्गों को आरक्षण से बाहर किया जाए, ताकि असली वंचितों तक यह सुविधा पहुँच सके।
- गरीब बच्चों के लिए छात्रवृत्ति, नि:शुल्क कोचिंग और कौशल विकास योजनाएँ शुरू हों, ताकि वे प्रतिस्पर्धा में बराबरी से खड़े हो सकें।
निष्कर्ष
खान एजाज़ अहमद का कहना है कि – “आरक्षण का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा जब इसे जाति की बेड़ियों से निकालकर आर्थिक आधार पर लागू किया जाएगा। हर गरीब बच्चा, चाहे किसी भी जाति या धर्म का हो, शिक्षा और रोजगार में समान अवसर पाएगा, तभी भारत में सच्चा सामाजिक न्याय और समानता स्थापित होगी।”
