मराठवाड़ा मुक्ति दिवस विशेष: क्या स्वतंत्र भारत में बिना शर्त शामिल होकर मराठवाड़ा की जनता ने गलती की? — बोरसे गुरुजी

भोकरदन/करीम लाला
हर वर्ष 17 सितम्बर को हम मराठवाड़ा मुक्ति दिवस मनाते हैं। लेकिन जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो साफ़ दिखाई देता है कि मराठवाड़ा के विकास की केवल घोषणाएँ होती रहीं, जबकि यहाँ की जनता के साथ लगातार उपेक्षा होती गई।
मराठवाड़ा की जनता शुरुआत से ही सहनशील, त्यागी और निस्वार्थ देशभक्त रही है। जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब यहाँ की जनता ने बिना किसी शर्त के स्वतंत्र भारत में शामिल होने का निर्णय लिया। उस समय नेताओं के पास अवसर था कि वे मराठवाड़ा के विकास का एजेंडा केंद्र के सामने रखते, बजट में कुछ प्रावधान करवाते। लेकिन गुलामी से मुक्ति को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए नेताओं ने कोई शर्त नहीं रखी।
दुर्भाग्य से, इसके बाद मराठवाड़ा को बार-बार उपेक्षा ही मिली। शिक्षा, कृषि, उद्योग, रोज़गार और प्रशासनिक भागीदारी—हर क्षेत्र में मराठवाड़ा अन्य क्षेत्रों से काफी पीछे रह गया। आरक्षण की लड़ाई भी इसी उपेक्षा का परिणाम है, जो किसी एक समाज के साथ नहीं, बल्कि संपूर्ण जनता के साथ हुआ अन्याय है।
पहले रज़ाकारों ने जनता को लूटा और फिर लोकतंत्र में चुने गए प्रतिनिधियों ने स्वार्थ के लिए विकास से मुँह मोड़ लिया। नेताओं ने जनता की समस्याओं को नज़रअंदाज़ कर केवल अपने और अपने परिवार के हित साधे। नतीजा यह हुआ कि जनता गरीबी और दारिद्र्य से जूझती रही और नेता धनाढ्य बनते गए।
आज भी मराठवाड़ा में शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है, स्थानीय युवाओं को नौकरियों में पर्याप्त स्थान नहीं मिलता। अधिकतर नौकरियां अन्य क्षेत्रों से आए लोगों के पास हैं। बेरोज़गारी के कारण विवाह और सामाजिक जीवन की समस्याएँ बढ़ रही हैं।
कृषि की स्थिति भी बदतर है। किसानों की आत्महत्याओं का सबसे बड़ा आँकड़ा मराठवाड़ा से जुड़ा है। भ्रष्टाचार और नेताओं-अधिकारियों की मिलीभगत ने आम जनता का जीना मुश्किल कर दिया है। औद्योगिक विकास का भी केवल नाम लिया गया, पर वास्तविकता में कारखाने और उद्योग खड़े नहीं हो सके।
इन परिस्थितियों में सवाल उठता है कि — क्या मराठवाड़ा की जनता ने स्वतंत्र भारत में बिना शर्त शामिल होकर गलती की थी?
अब ज़रूरत है कि नए और दूरदर्शी नेता आगे आएँ। उन्हें मराठवाड़ा की पिछली उपेक्षा के कारणों को समझकर ठोस योजनाएँ बनानी होंगी। राज्य सरकार और स्थानीय नेतृत्व को ईमानदारी से मराठवाड़ा के विकास के लिए काम करना होगा, वरना आने वाला समय इन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा।
