बुलढाणा में शेतकरी हक्क परिषद में बच्चू कडू का उग्र भाषण — “आत्महत्या करने से बेहतर है किसी विधायक को काट डालो” बयान पर मचा बवाल

बुलढाणा/प्रतिनिधि
बुलढाणा जिले के पातुर्डा गांव में राज्यव्यापी शेतकरी हक्क परिषद का आयोजन किया गया। इस परिषद में प्रहार जनशक्ति पक्ष के प्रमुख और पूर्व विधायक बच्चू कडू, राष्ट्रीय समाज पक्ष के प्रमुख महादेव जानकर और ऑल इंडिया पैंथर सेना के नेता दीपक केदार प्रमुख रूप से उपस्थित थे। परिषद के दौरान किसानों की बदहाल स्थिति और सरकार की नीतियों के खिलाफ जबरदस्त नाराज़गी देखने को मिली।
अपने संबोधन में बच्चू कडू ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा — “किसान से पूछा जाए कि उसे क्या आता है, तो वह कहता है कुछ नहीं। अगर कुछ नहीं आता तो आत्महत्या क्यों करते हो? आत्महत्या करने से बेहतर है किसी विधायक को काट डालो!” उनके इस बयान से सभा में सन्नाटा छा गया और उपस्थित लोगों ने तालियां बजाकर प्रतिक्रिया दी।
बच्चू कडू ने कहा कि यह परिषद किसानों के दर्द और दुःख की है। दिवाली जैसे त्योहार के दिन भी किसानों को अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठानी पड़ रही है। उन्होंने कहा, “किसानों ने विचारों की लड़ाई छोड़कर जात-पात की राजनीति अपनाई, इसी वजह से किसान पिछड़ गया। अगर सोयाबीन या कपास का उचित भाव नहीं मिलता, तो किसानों को चूड़ियाँ पहन लेनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को धार्मिक और जातीय आधार पर बाँट रही है — कोई भगवा, कोई हरा, कोई नीला, और इसी वजह से किसान कमजोर हो गया है। बच्चू कडू ने कहा कि “शरद जोशी ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़कर किसानों के हक के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन किसानों ने ही उन्हें गिरा दिया। बाबासाहेब आंबेडकर के साथ भी ऐसा हुआ। अगर आप जातियों में बँटते रहे, तो आपके लिए कोई नहीं लड़ेगा।”
बच्चू कडू ने आगे कहा, “शहर के विधायक तो आराम से रहते हैं, हफ्ता वसूल कर लेते हैं, लेकिन किसानों का विधायक सबको खटकता है। तुमसे अच्छा तो तुम्हारा बैल है, उसे कम से कम लात तो मार सकते हो। सरकार सूअर जैसी है — सूअर चलेगा, लेकिन यह सरकार नहीं।”
उन्होंने किसानों से आह्वान किया कि वे अब आत्महत्या नहीं, बल्कि संघर्ष शुरू करें। “अगर हमारी उपज को सही दाम मिले, तो हम खुद लोगों को नौकरी पर रख सकते हैं। आरक्षण से एक परिवार या समाज को फायदा होता है, लेकिन फसलों के सही भाव से पूरा गांव खुशहाल हो सकता है।”
दीपक केदार और महादेव जानकर ने भी परिषद में सरकार की कृषि नीतियों की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि किसानों की बदहाली के लिए शासकीय उपेक्षा और गलत नीतियाँ जिम्मेदार हैं।
इस परिषद को किसान एक “दर्द और जागरण की सभा” बता रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपनी उपेक्षा, आत्महत्याओं और सरकारी उदासीनता पर खुलकर रोष व्यक्त किया।
